बजट में शामिल धनराशि को तत्काल सरेंडर करने की सलाह, सीएजी रिपोर्ट में अवैध खनन, कौशल विकास मिशन में फर्जीवाड़ा, सड़क निर्माण में खेल, कूड़ा निस्तारण, खेल सुविधाओं में लापरवाही भी.
लखनऊ: नियंत्रक एवं लेखा महान निरीक्षक (सीएगी) की वित्त लेखा परीक्षा रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट या बिना विवेक के तैयार किया गया या फिर योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीर चूक हुई. ऐसे में बजट के 29 हजार करोड़ रुपए खजाने में ही पड़े रह गए. रिपोर्ट में बजट में शामिल धनराशि को तत्काल सरेंडर करने और धनराशि सरेंडर न करने पर संबंधित अधिकारी को जिम्मेदार ठहरने की बात कही गई है.
सीएजी रिपोर्ट मंगलवार को विधान मंडल में पेश की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि खर्च का गलत वर्गीकरण हुआ. वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में बहुत ज्यादा खर्च किया गया. बड़ी संख्या में अप्रयुक्त प्रावधान से 75 फ़ीसदी से ज्यादा धन बिना खर्च के रह गया.
रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2023-24 के 72 मामलों में 70,288 करोड़ रुपए का मूल बजट था. अनुपूरक बजट में 3,312 करोड़ रुपए और जारी किए गए. ऐसे में कुल बजट 73,600 करोड़ रुपए से भी ज्यादा हो गया. हालांकि, खर्च सिर्फ 56,549 करोड़ रुपए ही किए गए. सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक 17 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च नहीं किए गए. 26 योजनाओं के लिए 15 अनुदान के तहत 9,859 करोड़ रुपए का प्रावधान था लेकिन एक रुपया खर्च नहीं किया गया. 55 योजनाओं के लिए 2,465 करोड़ रुपए दिए गए थे लेकिन एक पाई खर्च नहीं की गई.
सीएजी रिपोर्ट में अवैध खनन, कौशल विकास मिशन में फर्जीवाड़ा, सड़क निर्माण में खेल, कूड़ा निस्तारण, खेल सुविधाओं में लापरवाही, सरयू नहर निर्माण में सरकारी धन का दुरुपयोग समेत कई विभागों की में अनियमित और लापरवाही के साथ ही भ्रष्टाचार की पोल भी खुली है.
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक अवैध खनन से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए की चपत लगी. वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2020-21 के बीच 11 जिलों में जमकर अवैध खनन हुआ. सरकार की निगरानी के बावजूद पट्टों के आवंटन, क्षेत्र निर्धारण, भंडारण लाइसेंस से लेकर राजस्व संग्रह और वसूली में खूब अनियमिताएं हुईं. पट्टाधारकों ने निर्धारित पट्टा से 268.91 हेक्टेयर अधिक क्षेत्रफल में खनन किया. रिपोर्ट के मुताबिक पट्टाधारकों ने 26.89 लाख घन मीटर अवैध खनन किया. पट्टाधारकों ने एक ही वाहन संख्या के विभिन्न क्षमता और प्रकार दिखाकर ट्रांजिट पास बनाए. कृषि ट्रैक्टर द्वारा खनिज परिवहन, अनुपयुक्त वाहन, आयोग्य और फर्जी पंजीकरण संख्या वाले वाहनों के पास बनाए गए. यही नहीं, खनन के लिए प्रतिबंधित महीनों में भी पारगमन के लिए पास बनाए गए. रिपोर्ट के मुताबिक परिवहन के लिए उल्लिखित दूरी वास्तविक दूरी से बहुत ज्यादा पाई गई. राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम कोहड़ारा द्वारा खनन पट्टा परमिट लिए बिना 53,88,930 घन मीटर गिट्टी और बोल्डर का खनन कर उपयोग किया गया.
सीएजी ने कानपुर के एचबीटीयू में 7 साल से चल रहे भवन निर्माण में खर्च 8.37 करोड़ रुपए अलाभकारी माना है. एचबीटीयू के इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विभाग में भवन निर्माण का काम अभी तक पूरा न होने पर सीएजी ने ये टिप्पणी की है. सीएजी ने ऑडिट में काम पूरा न होने को लेकर आवास विकास परिषद पर सवाल उठाए हैं. इसी तरह बलरामपुर में तीन आईटीआई के लिए 10.76 करोड़ रुपए का खर्च भी सीएजी ने अलाभकारी पाया है. ये आईटीआई केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने स्वीकृत किए थे. हालांकि, 6 साल में भी भवन निर्माण का काम पूरा नहीं हो सका.
सीएजी ने बरेली जेल में पावर बैकअप प्रणाली में खर्च 1.95 करोड़ रुपए भी व्यर्थ होने की बात कही है. बैकअप प्रणाली का काम मार्च 2018 तक पूरा होना था. 13 महीने विलंब से बैकअप प्रणाली शुरू हुई लेकिन 2 महीने में ही ठप हो गई. सीएजी रिपोर्ट में कार्यदाई संस्था पीईसी पर निष्क्रियता और विभागीय लापरवाही का आरोप लगाया है. रिपोर्ट के मुताबिक बरेली सेंट्रल जेल में मोबाइल जैमरों को पावर बैकअप देने के लिए स्थापित सौर ऊर्जा आधारित बैकअप प्रणाली 5 साल बाद भी क्रियाशील नहीं हो सकी है.
सीएजी रिपोर्ट में सरयू नहर निर्माण में सिंचाई विभाग के अफसरों और ठेकेदारों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सिंचाई विभाग के अफसरों ने चहेते ठेकेदारों पर सरकारी खजाना जमकर लुटाया. सरयू नहर निर्माण परियोजना के गठन से लेकर इसके लोकार्पण तक हर कदम पर गड़बड़ी हुई. अधिकारियों की लापरवाही के चलते किसानों के हित के लिए बनी ये परियोजना 40 साल बाद पूरी हो सकी. रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों से ज्यादा ठेकेदारों को सरयू नहर निर्माण परियोजना का फायदा हुआ. इस परियोजना की प्रारंभिक लागत 299.20 करोड़ रुपए थी जो खत्म होने तक 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा पहुंच गई. नहर के कुछ हिस्सों के निर्माण का काम करने वाली मेसर्स एसईडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को 12.60 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ दिया गया. मिट्टी के काम में रॉयल्टी लेने के बाद भी ठेकेदारों को अनुबंधित दर पर मिट्टी का भुगतान किया गया.
सीएजी रिपोर्ट में चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय की लापरवाही से 81.30 लाख रुपए का चूना लगने की बात सामने आई है. मामला गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के गृहकर भुगतान में हुई लापरवाही का है. मेडिकल कॉलेज को गृहकर बकाया पर 141.66 लाख रुपए की नोटिस भेजी गई थी. कॉलेज के प्रिंसिपल ने महानिदेशालय से धनराशि मांगी लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. महानिदेशालय से समय पर धनराशि जारी न करने से ब्याज के रूप में 81.30 लाख रुपया अतिरिक्त जमा करना पड़ा.
सीएजी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन में घोटाले और फर्जी नियोजन का मामला भी उजागर हुआ है. सीएजी की जांच में सामने आया कि कई प्रशिक्षुओं के नियोजन के दावे फर्जी थे. मिशन ने 2019-22 की 13 परियोजनाएं 11 ऐसी एजेंसियों को सौंप दीं जिन्हें वर्ष 2016 से 19 के दौरान भी परियोजनाएं दी गई थीं. इनमें से 4 का प्रदर्शन काफी खराब था. मिशन ने मार्च 2022 तक 2,396 प्रशिक्षुओं के रोजगार का लक्ष्य पूरा होने का दावा किया था. उनके प्रशिक्षण और नियोजन में 11.12 करोड़ रुपए खर्च किए थे जबकि जांच में कई मामले संदिग्ध पाए गए. जिन लोगों को नौकरी देने का दावा था, उन्होंने संपर्क करने पर नौकरी की बात से साफ इनकार कर दिया. इनमें ज्यादातर स्कूल कॉलेज के शिक्षक या लैब असिस्टेंट के पद थे. हालांकि, राज्य सरकार ऐसे सभी मामलों में कार्रवाई कर रही है.
सीएजी रिपोर्ट में प्रदेश में खेलों पर करोड़ों रुपए के खर्च के बाद भी नतीजा न आने की बात कही गई है. रिपोर्ट में वर्ष 2007 में यूपी के खिलाड़ियों ने 77 पदक जीते थे जो वर्ष 2011 में घटकर 70, वर्ष 2015 में 68 और वर्ष 2022 में 56 रह गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2020 में 347.05 करोड़ रुपए की लागत से बने सैफई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में 2 साल से कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच नहीं हुआ. स्टेडियम में दर्शक दीर्घा, मीडिया सेंटर, टीवी प्रोडक्शन रूम और लिफ्ट जैसी सुविधाएं देने के बाद भी संसाधनों का उपयोग नहीं किया गया.
सीएजी रिपोर्ट में केंद्रीय सड़क निधि से हुए सड़क निर्माण में लापरवाहियां उजागर हुई हैं. अधिकारियों पर दीर्घ, मध्यम व अल्पकालिक योजना तैयार किए बगैर सड़क निर्माण का आरोप लगाया गया है. सड़क निर्माण के लिए अधिकारियों ने यातायात सर्वेक्षण तक नहीं कराया.